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शोले: एक अमर कहानी दोस्ती, साहस और बदले की
फिल्म शोले 1975 में आई थी और भारतीय सिनेमा की सबसे यादगार और ऐतिहासिक फिल्मों में से एक है। इसकी कहानी एक छोटे से गाँव रामगढ़ से शुरू होती है, जहाँ सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारी ठाकुर बलदेव सिंह ने दो दिलेर और मजेदार अपराधियों, वीरू और जय, को एक खतरनाक मिशन पर भेजा है - कुख्यात डाकू गब्बर सिंह को पकड़ने का। इस किरदार में अमजद खान ने गब्बर सिंह की भूमिका निभाई है और उन्होंने इस किरदार को अमर बना दिया है।
ठाकुर बलदेव सिंह का गब्बर के साथ पुराना हिसाब था। एक समय में, ठाकुर ने गब्बर को गिरफ्तार किया था, लेकिन गब्बर जेल से भाग निकला और ठाकुर के परिवार का बेरहमी से कत्ल कर दिया, और ठाकुर को अपंग बना दिया। अब ठाकुर अपने परिवार के बदले के लिए वीरू और जय की मदद लेता है।
वीरू और जय की दोस्ती फिल्म का एक खास पहलू है। इनकी दोस्ती को दर्शाने वाला गाना 'ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे' आज भी दोस्ती का प्रतीक माना जाता है। वहीं वीरू का दिल गाँव की चुलबुली लड़की बसंती (हेमा मालिनी) पर आ जाता है, जबकि जय ठाकुर की बहू राधा (जया भादुरी) की ओर धीरे-धीरे आकर्षित होता है।
फिल्म में गब्बर सिंह का किरदार भारतीय सिनेमा में खलनायक की एक नई पहचान बनाता है। उसके संवाद जैसे 'कितने आदमी थे?' आज भी मशहूर हैं और दर्शकों के दिलों में डर और रोमांच भर देते हैं। गब्बर और उसके आदमियों से वीरू और जय की टक्कर फिल्म में रोमांच को और बढ़ा देती है।
कहानी के अंत में वीरू और जय गब्बर के गिरोह का सामना करते हैं। इस संघर्ष में जय अपनी जान की कुर्बानी देकर वीरू और गाँव की रक्षा करता है। यह बलिदान दोस्ती और वीरता का एक अमर प्रतीक बन जाता है।
फिल्म शोले केवल एक मनोरंजक कहानी नहीं है, बल्कि यह दोस्ती, न्याय, और बलिदान की एक अमर गाथा है, जो दर्शकों के दिलों में आज भी जिंदा है।
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